Monday, November 2, 2015

अभी होश में हूँ ......

कैसा गुजरा है दिन आज का बताऊंगा अभी होश में हूँ 
जरा होश खोने दो फिर मै बताऊंगा अभी होश में हूँ

है खबर सब मुझे किस किस ने मुझे धोखा दिया है 
जो बन जाओ हमसफर तो बताऊंगा अभी होश में हूँ

मासूम दिल मेरा ना जाने कब कैसे पत्थर सा हो गया है 
बिखर गए टुकडो में कैसे बताऊंगा अभी होश में हूँ

आसुंओ और शराबो के एक दौर से मैं गुजरा हूँ  
कितनी पीया कितना रोया बताऊंगा अभी होश में हूँ

अभी होश में हूँ..........अभी होश में हूँ.........

Wednesday, October 28, 2015

खुबसूरत...............




मेरी कलम की ज़रूरत हो तुम,
मेरी जज्बातों के अल्फ़ाज हो तुम!
चाँद भी शर्म से बदली में छुप जाए,
क्या कहू तुम किस कदर खुबसूरत हो तुम !!

Thursday, August 20, 2015

नहीं .......

हम बुरे दिखते है तो बुरे ही सही
मुखौटा अच्छाई का अब मिलता नहीं

जो भी तुम समझो हमे तुम समझते रहो
अंदाज अपने जीने का बदलता नहीं

क्या सही है और क्या है गलत
दिल की मर्जी को कभी रोकता नहीं

जी है जिंदगी मैंने अपनी शर्तो पर
तकलीफों से है दोस्ती मौत से डरता नहीं

धड़कनो और सांसो में है करीबी रिश्ता
एक टूट जाए तो दुश्मन भी दूर रहता नहीं


Tuesday, August 4, 2015

चलो एक धर्म बनाये........

चलो एक धर्म बनाये, रोटी को अपना भगवान बनाये 
रोटी को रोटी चढ़ाये और मिले प्रसाद भी रोटी की 
ना हो कोई भूखा ना कोई भूखा गुहार लगाये  
चलो एक धर्म बनाये, रोटी को अपना भगवान बनाये 



Saturday, July 18, 2015

शायद छोटू को परवाह नहीं: शायद छोटू को परवाह नहीं

शायद छोटू को परवाह नहीं: शायद छोटू को परवाह नहीं: बच्चे को टेबल साफ़ करते और अनमाने ढंग से प्लेट हटाते देखा शायद.. उसे भूख ही नहीं लगती 'छोटू एक और रोटी ला' और बच्चा जले हाथो रोट...

Sunday, June 7, 2015

तुम आओ तो सही

तुम्हे अपने पलको पर बसा लेंगे तुम आओ तो सही
शराब तक छोड़ देंगे आँखों से तुम पिलाओ तो सही

तेरे दिए हर दर्द-ए-सितम का कोई हिसाब भी ना करेंगे तेरे हर नखरों को सह लेंगे बस तुम आओ तो सही

हम तेरी हर नादानी को नजर अंदाज कर देंगे
तुम्हे खुदा बना लेंगे अपने दिल का तुम आओ तो सही

खुशियो के घर में फूलो के बिस्तर पर तुझे सुलायेंगे 
अपने आगोश में हरदम रखूंगा तूम आओ तो सही


Tuesday, May 26, 2015

वो नज्म ही क्या ......


एक हार में टूट जाए वो हौसला ही क्या 
जो घायल ना कर पाए वो अदा ही क्या 

दीदार में जिसके तड़प ना हो वो दीदार ही क्या 
चांदनी रात में संग यार ना हो वो रात ही क्या 

दर्द में अगर आह ना हो ऐसा दर्द ही क्या 
इलाज में जिसके हर्ज ही ना हो वो मर्ज ही क्या 

जन्नत में सकूं ना मिले वो जन्नत ही क्या 
कबूल जो एक अर्जी में हो जाए वो मन्नत ही क्या 

लफ़्ज जो दिल में ना उतरे वो नज्म ही क्या 
जो नज्म से ना पिघले वो शख्स ही क्या